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अंगूर की खेती

अंगूर की खेती को कीड़ों से बचाने के लिए बाजार में आ गया है कीटनाशक

अंगूर की खेती को कीड़ों से बचाने के लिए बाजार में आ गया है कीटनाशक

खेती के साथ परेशानियां भी चलती रहती है। आजकल फसलों में कीटों का प्रकोप आम हो गया है, जिसके कारण किसान बुरी तरह प्रभावित होते हैं। कीटों के आक्रमण के कारण किसानों की फसलें चौपट हो जाती हैं। जिसके कारण उन्हें भारी नुकसान झेलना पड़ता है। इसको देखते हुए किसान आजकल ऐसी फसलें विकसित करने में लगे हैं, जिनमें कीटों का हमला न हो। कृषि वैज्ञानिक भरपूर कोशिश कर रहे हैं, कि नए प्रकार से विकसित की गई फसलों में कवक, फंगल, अन्य बैक्टीरिया, वायरस हमला न कर पाएं और फसल इन प्रकोपों से सुरक्षित रहे।
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इसके अलावा आजकल कृषि वैज्ञानिक कीटों से निपटने के लिए ऐसे कीटनाशकों का निर्माण कर रहे हैं जिनके प्रयोग से फसल में कीटों का पूरी तरह से सफाया हो जाए। इसी को देखते हुए अब एक ऐसे कवकनाशी को विकसित किया गया है जो अंगूर को एक खास बीमारी से बचाव के लिए बेहद उपयोगी है। फसल पर इसका प्रयोग करने से यह कवकनाशी कीड़ों का पूरी तरह से सफाया कर देगा।

अंगूर की खेती में होता है इस रोग का प्रकोप

अंगूर की खेती किसानों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसमें किसान को ज्यादा मेहनत करनी होती है। साथ ही कीटों का प्रकोप बहुत जल्दी होता है। अंगूरों में आमतौर पर 'डाउनी मिल्ड्यू' नामक बीमारी हो जाती है, जिसकी वजह से अंगूर की बेल बुरी तरह से प्रभावित होती है। यह एक फफूंद रोग है, जिसके कारण अंगूर के उत्पादन में भारी कमी आती है। जिसको देखते हुए देश के कृषि वैज्ञानिक बहुत दिनों से इस रोग का उपाय खोजने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अब जाकर उन्हें सफलता हाथ लगी है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस कवकनाशी को स्टनर नाम दिया है। इसे इंसेक्टिसाइड्स (इंडिया) लिमिटेड (आईआईएल) ने विकसित किया है। यह कवकनाशी अंगूर में होने वाली डाउनी मिल्ड्यू बीमारी को पूरी तरह से खत्म कर देगा। भारत में महाराष्ट्र के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी अंगूर की खेती बहुतायत में होती है। इस कवानाशी के बाजार में आ जाने से किसानों को कवक के प्रकोप से राहत मिलेगी।

अंगूर की खेती के लिए पहली बार विकसित हुई है ऐसी दवा

इंसेक्टिसाइड्स (इंडिया) लिमिटेड के अधिकारियों और कृषि वैज्ञानिकों का कहना है, कि अंगूर में लगने वाले कीड़ों के प्रकोप से निपटने के लिए देश में पहली बार किसी कीटनाशक का निर्माण किया गया है। अंगूर किसान सालों से इस तरह की दवाई की प्रतीक्षा कर रहे थे, जो अंगूर में लगने वाले इस रोग को जड़ से खत्म कर सके। निश्चित तौर पर किसानों के लिए यह दवाई उत्पादन बढ़ाने में कारगर होगी। अगर अंगूर के उत्पादन की बात करें तो इसका उत्पादन महाराष्ट्र में मुख्यतः नासिक, बारामती, सांगली, नारायणगांव, सोलापुर और सतारा जिलों में जमकर होता है। इसके अलावा अंगूर कि खेती देश के अन्य राज्यों में भी होती है। जहां के अंगूर किसान इस दवाई से लाभान्वित हो सकेंगे और अपनी फसल को कीटों से सुरक्षित कर सकेंगे।
इस राज्य की मशहूर अंगूर की खेती व खाद, सिंचाई, मृदा के बारे में जानें

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महाराष्ट्र राज्य में अंगूर का सर्वाधिक उत्पादन किया जाता है। अंगूर की कृषि हेतु राज्य का योगदान कुल उत्पादन का 81.22 प्रतिशत है। नासिक अंगूर का उत्पादन करने वाला प्रमुख जनपद है। बागवानी फसलों में अंगूर की खेती का भी एक प्रमुख स्थान है। देश में अंगूर का उत्पादन महाराष्ट्र के नासिक जनपद में की जाती हैं। नासिक में इतनी ज्यादा अंगूर का उत्पादन किया जाता है, कि माना जाता है कि देश का 70 प्रतिशत अंगूर नासिक में ही किया जाता है। इसके अतिरिक्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली में की जा जाती है। यहां किसान अंगूर का उत्पादन करके अच्छा खासा लाभ अर्जित कर रहे हैं। भारत में व्यावसायिक रूप से अंगूर की कृषि पूर्व के तकरीबन छः दशकों से की जा रही है एवं फिलहाल आर्थिक दृष्टिकोण से सबसे ज्यादा जरुरी बागवानी उद्यम के रूप से अंगूर की खेती काफी उन्नति पर है। अंगूर की खेती करने का तरीका काफी अलग होता है और इसे खाद से लेकर कीट से बचाने के लिए कई तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
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अंगूर के उत्पादन हेतु कैसी होनी चाहिए मृदा एवं जलवायु

अंगूर की खेती हेतु बेहतर जल निकास वाली दोमट, रेतीली मिट्टी उपयुक्त मानी गई है। इसमें इसकी कृषि सफलतापूर्वक की जा सकती है। वहीं अधिक चिकनी मिट्टी इसकी कृषि हेतु उचित नहीं होती है। इसके उत्पादन हेतु गर्म, शुष्क एवं दीर्घ ग्रीष्म ऋतु के माफिक रहती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=JeQ8zGkrOCI&t=243s[/embed]

जानें अंगूर के पौधे को लगाने के बारे में

अंगूर की बागवानी एवं उत्पादन हेतु गड्ढे की तैयारी -तकरीबन 50*50*50 सेमी आकार के गड्ढे खोदकर प्रारूपित करते हैं एवं इसको एक सप्ताह के लिए बिल्कुल खुला छोड़ देते हैं। अंगूर का पौधरोपण के वक्त गड्ढों में सड़ी गोबर की खाद (15-18 किलोग्राम), 250 ग्राम नीम की खली, 50 ग्राम सुपर फॉस्फेट व 100 ग्राम पोटेशियेम सल्फेट प्रति गड्ढे में मिलाकर भरी जाती है।

अंगूर के उत्पादन हेतु बेहतर एवं सटीक वक्त

दिसंबर से जनवरी माह में फसल की तैयार की गई जड़ की रोपाई की जाती है, अंगूर की विभन्न तरह की किस्में होती हैं। जिसमें से प्रमुख उन्नत किस्मों परलेट, ब्यूटी सीडलेस, पूसा सीडलेस है।


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अंगूर की फसल में कब और कैसे खाद लगता है

अंगूर की फसल को अनेक प्रकार के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, इसलिए नियमित एवं संतुलित मात्रा सही ढंग से खाद का उपयोग करें।अंगूर की फसल में मुख्य रूप से खाद जड़ों मे गड्ढे बनाकर दिया जाता है एवं उसे मिट्टी द्वारा ढका जाता है। छंटाई के तुंरत उपरांत जनवरी के अंतिम सप्ताह में नाइट्रोजन एवं पोटाश की आधी मात्रा व फास्फोरस की पूर्ण मात्रा दाल देनी चाहिए। शेष मात्रा फल लगने के उपरांत दें, खाद एवं उर्वरकों को बेहतरीन ढंग से मृदा में मिश्रण के तुंरत बाद सिंचाई करें। खाद को मुख्य तने से दूर 15-20 सेमी गहराई पर डालें।

कैसे की जानी चाहिये अंगूर की सिंचाई ?

अंगूर की कृषि देश के अर्धशुष्क क्षेत्रों में की जाती है, इसलिए इस फसल में वक्त वक्त पर सिंचाई की जरुरत होती है। अंगूर की फसल मे पर्याप्त नमी बनाए रखने हेतु 7-8 दिनों में एक पानी दें परंतु कृषक मौसमिक आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। भारत में अधिकाँश कृषक आजकल अंगूर की खेती में टपक सिंचाई का प्रयोग किया जाता है, जिससे बहुत सारे लाभ होते हैं। जब फलों की तुड़ाई हो जाये उसके बाद भी एक सिंचाई जरूर कर देनी चाहिए।